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________________ नवा बोल-१०५ क्षेत्रस्तवन आदि । इन सव भेदो को स्फुट करने के लिए कुछ विवेचन करना आवश्यक है । नामस्तवन के भी दो भेद है। एक भेद- नामस्तवन, दूसरा अभेद-नामस्तवन । भगवान् ऋषभदेव को ऋषभदेक कहना और भगवान् महावीर को महावीर कहना अभेद-नाम है । इस अभेद नाम का स्तवन करना अभेद-नामस्तवन कहलाता है। किसी एक जीव या एक अजीव अथवा किसी जीवाजीव, या अनेक जीवो अथवा अनेक अजीवो को तीर्थकर का नाम देना भेद-नाम कहलाता है । भेद-नाम मे ओर अभेद-नाम में बहत अन्तर है । अभेद-नाम से उसी वस्तु का बोध होता है किन्तु भेद-नाम से किसी भी वस्तु को, किसी भी नाम से सवोधन किया जा सकता है। जैसे रुपया को रुपया कहना अभेद-नाम है लेकिन बालक का रुपया नाम रख देना भेद-नाम है। भेद-नाम से भेद जैसा और अभेद-नाम से अभेद जैसा कार्य होता है। भेद-नाम से अर्थक्रिया की सिद्धि नही होती और अभेद-नाम से अर्थक्रिया सिद्ध होती है । थाली मे भोजन के न म से पत्थर जैसी कोई वस्तु रख दी जाये तो उससे क्षुधा शान्त नहीं होती, क्योकि वह भोजन अभेद-नाम नही वरन् भेद-नाम है। भेद नाम वाले भोजन से भूख नही मिट सकती। इस प्रकार के भेद-नाम से अर्थक्रिया की सिद्धि नही होती । अर्थक्रिया तो अभेद-नाम से ही सिद्ध होती है । यह नामस्तवन की बात हुई। इसी प्रकार तीर्थड्रो का नाम लिखकर उन नामो मे स्थापना की जाये या मूर्ति मे उनकी स्थापना की जाये तो हम उसे भेद निक्षेप से तो म नते है, मगर अभेद-निक्षेप से नही मान सकते। इसी प्रकार इस तरह की नामस्थापना
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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