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________________ आठवां बोल-६५ इस प्रकार का समभाव एकदम नही आ सकता, लेकिन अभ्यास करते रहने से जीवन मे समभाव का आना कठिन भी नहीं है। कहा जा सकता है कि - 'ऐसा समभाव लेकर बैठे तो पेट भी नही भर सकता और आखिर भूखो मर कर प्राण गंवाने पडेंगे । ससार-व्यवहार चलाने के लिए छलकपट करना आवश्यक है और जिसमे जितना बल और साहस हो, उसे उतना ही अधिक छल-कपट करना चाहिए। ऐसा न करके, समभाव को छाती से चिपटा कर बैठे रहे तो जीवन कष्टमय बन जायेगा।' इस कथन के उत्तर मे ज्ञानीजन कहते है- समभाव धारण करने से जीवन कष्टमय बनता ही नहीं है । विषम भाव से ही कष्टो की सृष्टि होती है। बहुत से लोगो की यह मान्यता है कि 'वलीया के दो भाग' वाली नीति रखने से ही जीवन-व्यवहार ठीक ठीक चल सकता है। परन्तु ज्ञानी पुरुषो का कथन इसमे विपरीत है। उनके कथनानुसार समभाव धारण करने से ही जीवन-व्यवहार भली-भाँति चलता है। इस प्रकार दोनो प्रकार के लोग अपनी-अपनी मान्यता प्रकट करते है। इस कारण प्रकृत विषय मतभेद का विषय बन जाता है । मगर तटस्थभाव से विचार करने पर अन्त मे यही प्रतीत होता है कि ज्ञानी पुरुषो का कथन ही ठीक है। इस वात का निर्णय करने के लिए आप विचार कीजिए कि दुनिया का काम पढ़े-लिखे लोगो से चल रहा है या अपढ लोगो से ? अगर पढे लिखे लोगो से ही काम चलता हो तो दुनिया मे पढ़े-लिखे अधिक हैं या अपढ लोग
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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