________________
चौथा बोल-२५३
__ में दूसरों का कल्याण करने वाला अपना भी कल्याण करता _ है और जो दूसरो का कल्याण नहीं करता वह अपना भी
कल्याण नहीं करता । विनयवान् पुरुष दूसरो को भी विनीत बनाता है और इस प्रकार भगवान् के धर्म का प्रचार करता है। विनय के द्वारा भगवान् का धर्म फैलाने वाला भगवान् के समान ही आदरणीय बन जाता है । उदाहरणार्थ एक पुरुष किसी डूबते को बचाता है और दूसरा एक डूबती हुई नौका को बचाता है। हालाकि नौका लकडी की बनी हुई है, फिर भी नौका की रक्षा करने वाला लकड़ी की नही वरन् नौका के आधार पर रहे हुए अनेक मनुष्यो की, रक्षा करता है । इस आधार पर यही कहा जा सकता है कि जो समदृष्टि को रक्षा करता है, वही बडा है । - एक मनुष्य ऐसा है जो सिर्फ अपनी ही सार संभाल रखता है और दूसरा सम्यग्दृष्टि की भी सार-संभाल करता है और इसके लिए कटुक शब्द भी सुन लेता है। इन दोनो प्रकार के मनुष्यो मे से वही वडा है जो सम्यग्दष्टि की सेवा करता है । सम्यग्दृष्टि की सेवा करते हुए कभी-कभी कटुक शब्द सुनने का भी अवसर आ जाता है । परन्तु सच्चा सेवाभावो पुरुष यही विचार करता है कि अगर मेरी निन्दा मे कुछ भी सचाई है तो निन्दा सुनकर मुझे ' अपनी निन्दनीय बात का त्याग करने का प्रयत्न करना चाहिए । अगर मेरी निन्दा मे तनिक भी सत्यता नही है तो यही समझना चाहिए कि मेरे पूर्वोपाजित अशुभ कर्म । शेष हैं और उन्ही के कारण मेरी निन्दा हो रही है। ऐसी निन्दा से मेरी कोई हानि नही होने की। इससे तो मुझे