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१६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
मोक्ष के मार्ग में प्रयाण करने के लिए पराक्रम को आवश्यकता होती है और इसीलिए २६वे अध्ययन मे 'सम्यक्त्व पराक्रम' का प्रतिपादन किया गया है । इस 'सम्यक्त्व पराक्रम' नामक अध्ययन मे क्या बतलाया गया है, इसी बात का यहाँ वर्णन किया जायगा । । 'सम्यक्त्व पराक्रम' नामक २६वें अध्ययन का वर्णन करने से पहले यह देखना है कि इस अध्ययन का 'मोक्षमार्ग' नामक अठाईसवें अध्ययन के साथ क्या सम्बन्ध है ? पूर्वापर सम्बन्ध समझे विना कहो जाने वाली वात ठीक नहीं होती । नीति मे भी कहा है'सहति श्रेयसी' अर्थात् एक का दूसरे के साथ सम्बन्ध जोडने मे कल्याण है और पारस्परिक सम्बन्ध न जोडने मे कल्याण नहीं है। शरीर के अगोपांग यो भले ही अलग-अलग दिखाई देते हैं, मगर वास्तव मे वह सब परस्पर सम्बद्ध है। अगोपागो के पारस्परिक सम्बन्ध के अभाव में काम नही चल सकता । दाहिना और बाया हाथ जुदा-जुदा है, मगर दोनो के सहकार के बिना काम चल नहीं सकता । एक हाथ मे अगूठी पहनने के लिए दूसरे हाथ की सहायता चाहिए ही । यह वात जुदी है कि खुद का दूसरा हाथ वेकाम हो और कोई दूसरा मनुष्य अगूठी पहना दे, फिर भी दूसरे हाथ की आवश्यकता तो रहती ही है। इस तरह जैसे शरीर के विभिन्न अगो मे सगति की श्रावश्यकता है उसी प्रकार सूत्र में भी सगति की आवश्यकता है । इसी कारण यह देखना आवश्यक है कि अठाईसर्वे और उनतीसवें अध्ययनो मे सगति है या नहीं ? अगर संगति है तो किस प्रकार की ?
अट्टाइसवें अध्ययन का नाम 'मोक्षमार्ग' है और उन