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चौथा बोल - २१६
च्छेद के अनुसार 'गुरु' शब्द का अर्थ अन्धकार का नाशक होता है ।
घर मे अन्धकार हो तो कितनी कठिनाई होती है, यह सभी जानते है । इस कठिन ई से बचने के लिए घर मे दीया जलाया जाता है । घर से दीपक न हो तो चोर और साहूकार का तथा रस्सो और साप का विवेक नहीं हो सकता । अन्धकार के कारण बहुधा विपर्यास भी हो जाता है और एक चीज के बदले दूसरी चीज मालूम होने लगती है । अन्धकार से उत्पन्न होने वाला यह विपर्यास प्रकाश द्वारा दूर होता है । प्रकाश द्वारा ही चोर अथवा साहूकार का, साँप या रस्सी का विवेक हो सकता है । आप रात्रि मे व्यापार करते हैं किन्तु यदि प्रकाश न हो और अन्धकार मे व्यापार किया जाये तो वह व्यापार भी प्रामाणिक नही माना जाता । इस प्रकार व्यवहार मे भी प्रकाश की आवश्यकता है । अन्धकार मे किया गया व्यावहारिक कार्य भी प्रमाण नही माना जाता । यह हुई द्रव्य - अन्धकार की बात |
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जव द्रव्य - अन्धकार से भी इतना अधिक अनर्थ हो सकता है तो भाव - अन्धकार से कैसा और कितना अनर्थ उत्पन्न होता होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है । अज्ञान रूपी अन्धकार से न जाने कितने ज्यादा अनर्थ होते होगे । इस अज्ञान - अन्धकार ने ही ससार मे अन्धाधुन्धी फैला रखी है । साधु को प्रसाधु, असाधु को साधु, देव का कुदेव, कुदेव को देव, धर्म को अधर्म, अधर्म को धर्म जीव को अजीव ओर अजीव को जीव समझना आदि विपरीत