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चौथा बोल गुरु-सार्मिक-शुश्रूषा
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र के २९वें अध्ययन के संवेग, निर्वेद और धर्मश्रद्धा इन तीन बोलो पर विचार किया गया है । अब चौथे बोल 'गुरुसार्मिक शुश्रुषा' पर विचार करना है। इस विषय मे भगवान से निम्नलिखित प्रश्न किया गया है।
भूलपाठ प्रश्न- गुरुसाहम्मियसुस्सूसणाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? ।।४।।
उत्तर - गुरुसाहम्मियसुस्वॅसणाए णं विणयपडिवत्ति जणयइ, विणयपडिवन्ने य णं जीवे अणच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदुग्गईओ, वण्णसजलणभत्तिवहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबधई, सिद्धि सोग्गइ च विसोहेइ, पसत्थाई च णं विणयमूल इ सव्वकज्जाइ साहेइ, अन्ने य बहवे विणिइत्ता भवई ॥४॥