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तीसरा बोल-२०३
भयङ्कर समझता हू । बालविवाह से देश, समाज और धर्म को अत्यन्त हानि पहुंचती है। वह हानि कितनी और किस प्रकार पहुचती है, यह बतलाने का अभी समय नही है । किसी अन्य अवसर पर इस विषय मे मैं अपने विचार प्रकट करूंगा।
समुद्रपाल का विवाह रूपवती और सुशीला कन्या के साथ किया गया था। एक दिन समुद्रपाल अपने भवन के झरोखे मे बैठा था । वहा उसने देखा
कालो मुख कियो चोर नो फेरो नगर मँझार, समुद्रपाल तिन जोइने, लीनो सजम-भार । जोवा चतुर सुजान, भज लो नी भगवान् , मुक्ति नो मारग दोयलो, तज दो नो अभिमान ।
समुद्रपाल ने झरोखे मे बैठे-बैठे देखा कि एक मनुष्य का मुह काला करके उसे फासी पर चढने का पोशाक पहनाया गया है। उसके आगे बाजे बज रहे हैं और बहतसे लोग उसके साथ चल रहे हैं । फिर भी वह मनुष्य उदास है । यह दृश्य देखकर समुद्रपाल विचारने लगा-यह मनुष्य उदास क्यो है ? और इसे इस प्रकार क्यो ले जाया जा रहा है ? तलाश करने पर मालूम हुआ कि उसने इन्द्रियो के वश होकर राज्य का अपराध किया है और राजा ने उसे फासी पर लटका देने का दण्ड दिया है । यह जानकर समुद्रपाल फिर विचार करने लगा-' इन्द्रियो के वश होने के कारण यह पुरुष फासी पर लटकाया जा रहा है। वास्तव मे इन्द्रियो के भोग ऐसे ही है । इन्द्रियो के भोग इन सासारिक पदार्थों ने ही मेरे इस भाई को फांसी पर चढाया है।