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तीसरा बोल-२०१
पालित की वह पत्नी गर्भवती थी। उसने समुद्र के अन्दर जहाज मे हो. पुत्र का प्रसव किया ।
आज के लोग कहते हैं कि आधुनिक जहाजो में ही इस प्रकार की सुविधाएं होती हैं, मगर पुराने वर्णनों से प्रतीत होता है कि उस समय भी जहाजो मे कितनी सुन्दर सुविधाएं होती थी । प्रसवकाल अत्यन्त कठिन होता है । लेकिन प्राचीनकाल के लोग जहाज में भी उस स्थिति को सभालने में समर्थ होते थे।
पालित का पुत्र समुद्र मे जन्मा, इसलिए उसका नाम समुद्रपाल रक्खा गया । पालित अपनी पत्नी और पुत्र को लेकर घर पहुचा । पालित ने समुद्रपाल को बहत्तर कलाओं में पण्डित बनाया ।
वही सच्चे माता-पिता है जो अपनी सन्तानो को कलाशिक्षण द्वारा शिक्षित और सस्कारो बनाते हैं। कहावत है-'काचा सूत जैसा पूत ।' अर्थात् बालक कच्चे सूत के समान हैं । जैसा बनाना हो वैसे ही वह बन सकते है। आप वस्त्र पहनते हैं, किन्तु वस्त्र की जगह यदि सूत लपेट लो तो क्या ठीक कहलाएगा ? नही । इसी प्रकार बालक कच्चे सूत के समान हैं । जैसा चाहो उन्हे वैसा ही बना लो। अगर आप बालक को जन्म देकर ही रह गये और उन्हे सस्कारी नही बनाया तो वे कच्चे सूत की तरह ही निकम्मे रह जाएंगे।
प्राचीनकाल के लोग अपने बालक को बहत्तर कला के कोविद और शास्त्र में विशारद बनाते थे। ऐसा करके वह माता-पिता की हैसियत से अपना कर्तव्य पूरा करते