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१९६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
की इच्छा क्यो करते हो ? जव तुम पुद्गलों के गलन-स्वभाव की बात समझ जाओगे तब सासारिक पदार्थो के प्रति तुम्हें स्वभावत अरुचि विरक्ति उत्पन्न हो जायेगी और जव सासारिक पदार्थों के प्रति विरक्ति हो जायेगी तो परमात्मा के साथ अवश्य भेट हागी । अतएव अगर परमात्मा से भेट करने की इच्छा हो तो सामारिक पुद्गलो पर से ममता का भाव त्याग दो।
पुद्गल-लोभी जीवा, तेने जग्या न अन्तर दीवा । -
जो जीव पुद्गलो का लोभी बनकर उनके ममत्व में पड़ा रहता है, उसके हृदय मे परमात्मा से मिलने की भावना नही जागता । पौद्गलिक पदार्थों की खोज करतेकरते जव 'नेति-नेति अर्थात् यह वह नहीं है,',ऐमा कहकर छोडते जायोगे तभी परमात्मा का साक्षात्कार होगा । वेदान्तस्तोत्र में कहा हैहित्वा हित्वा दृश्यमशेष सविकल्प,
मत्वा श्रेष्ठ भादृशमात्रं गगनाभम् । ।, त्यक्त्वादेह चानुप्रविशन्त्यच्युतभक्त्या ,
तं ससारध्वान्तविनाश हरिमीडे ।। इस स्तोत्र का भावार्थ यही हो सकता है कि परमात्मा से भेटने का सरल मार्ग यह है कि पोद्गलिक पदार्थो को यह कहकर छोडते जाओ कि- 'यह परमात्मा नहीं है।' तुमने आत्मा को पौद्गलिक इच्छा का जो वेष पहना दिया है, वह वेप उतार कर फैक दो । तुम पुद्गलो की इच्छा न करो। उल्टा ऐसा विचार करो कि पुद्गलो का भोग करना मेरे लिए योग्य नहीं है। क्योकि पोद्गलिक पदार्थ