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तीसरा बोल- १६३.
नही हो सकता । मुर्दे को आनन्द क्यो नही मिलता ? इसलिए कि उसमे से सूक्ष्म आत्मा निकल गया है । स्थूल शरीर तो सामने पड़ा ही है, मगर सूक्ष्म आत्मा नही है । यह बात ध्यान में रखकर तुम मुर्दा जैसी स्थूल वस्तु पर क्यो मुग्ध होते हो ? तुम जीवित हो तो जीवित वस्तु अपनाओ अर्थात् सूक्ष्म आत्मा को देखो । स्थूल वस्तु पर मुग्ध मत बनो ।
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पर परिणामिकतायता छे जे पुद्गल तुझ योग हो मित्त, जड चल जगनी एठणो न घटे तुझने भोग हो मित । क्यो जाणुं क्यों बनी आवशे अभिनंदन रस रीति हो मित्त, पुद्गल - अनुभव त्याग थी करवी तस परतीति हो मित्त ।
कोई कह सकता है - आप हमें परमात्मा की भक्ति करने का उपदेश देते हैं, पर हम परमात्मा की प्रीति-भक्ति किस प्रकार कर सकते हैं? हमारा अत्मा कर्मलिप्त है और परमात्मा पवित्रात्मा है । इस प्रकार हम उस सच्चिदानन्द को किस तरह भेट सकते है
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कोई मनुष्य शरीर पर अशुचि धारण कर ले तो वह राजा से मिल सकता है ? कदाचित् ऐसा गन्दा आदमी राजा से मिलने की इच्छा करे तो क्या राजा उससे मिलना चाहेगा? कदाचित् राजा भी ऐसे आदमी से मिलना चाहे तो क्या उस आदमी की राजा से मिलने की हिम्मत हो सकेगी ? इसी प्रकार हमारा आत्मा कर्मों से मलीन है । इस अवस्था में हम पवित्र और सच्चिदानन्द परमात्मा से किस प्रकार मिल सकते है इस कथन के उत्तर मे ज्ञानीजन कहते हैं कि राजा से मिलने में तो कोई बाघा भी
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