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तोसरा बोल-१८३
के लोग सुखी है ? उस समय अधिक शान्ति थी या इस समय अधिक शान्ति है ? वैज्ञानिक साधन न होने पर भी प्राचीनकाल का मनुष्य-समाज अधिक सुख और शान्ति भोगता था । यह किसके प्रताप से ? धर्म के ही प्रताप से या किसी और के प्रताप से ? आज लोग विज्ञान पर ऐसे मुग्ध हो रहे हैं कि उन्हे धर्म का नाम तक नही सुहाता । इसका एकमात्र कारण लोगो की मोहावस्था ही है । विज्ञान की उन्नति को देखकर ज्ञानीजन प्रसन्न ही होते हैं । वह सोचते है कि पहले अधिकारपूर्वक नही बतलाया जा सकता था कि विज्ञान शान्ति का सहारक हैं। कदाचित् बतलाया जाता तो लोगो को इस कथन पर प्रतीति न होती । मगर आज हमे प्रमाणपूर्वक कहने का कारण मिला है कि आजकल विज्ञान का इतना विकास होने पर भी और वैज्ञानिक साधनो की प्रचुरता होने पर क्या मानव-जीवन का अस्तित्व और सुख शान्ति सुरक्षित है ? इस प्रकार आज हम धर्म का महत्व प्रमाणित करने में समर्थ हो सके हैं और प्रमाण-पुरसर कह सकते हैं कि 'धर्म ही सच्चा मगल है ।' धर्म ही अशरण का शरण है। धर्म में ही मानव समाज की सुखशान्ति सुरक्षित है । ,
कहने का आशय यह है कि धर्म का फल, विषयसुखो के प्रति अरुचि उत्पन्न होना है और जब विषयसुखो के प्रति अरुचि उत्पन्न हो, समझना चाहिए कि हमारे अन्त.. करण मे धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा उत्पन्न हो गई है। -
कहा जा सकता है कि-'हम तो यही सुनते आये हैं कि धर्म से स्वर्ग, इन्द्रपद, चक्रवर्ती का वैभव आदि सुख