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१५२-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
निर्वेद का फल क्या है ? यह प्रश्न देखकर स्वभावत: यह शका उत्पन्न होती है कि यह प्रश्न उठा हो क्यों ? एक ओर तो नि काम होकर धर्म करने का उपदेश दिया जाता है और दूसरी ओर निर्वेद के फल के सम्बन्ध में प्रश्न किया जाता है । ऐसे-ऐसे अनेक प्रश्न यहाँ उठ खडे होते है । इनके उत्तर मे कहा जाता है कि फल जाने बिना मूर्ख पुरुष भी किसी काम मे प्रवृत्ति नहीं करता। फिर वुद्धिमान् पुरुष कैसे प्रवृत्ति कर सकते है ? इस उत्तर के बावजूद भी यह प्रश्न खडा ही रहता है कि एक ओर निष्काम कर्म करने का उपदेश देना और दूसरी ओर यह कहना कि फल खाये विना मूर्ख भी प्रवृत्ति नही करता; इन दोनो परस्पर विरोधी बातो मे से कौनसी वात ठीक समझनी चाहिये ? ', इस प्रश्न का समाधान यह है कि फल का इन्द्रियजन्य सुख के साथ सबध है और जिस फल को ज्ञानीजन अप्रशस्त समझते है, उस फल की आकाक्षा करने से पतन' हो जाता है । अतएव इस प्रकार के फल के प्रति निष्कामनिरीह ही रहना चाहिए । ऐसे फल की कभी कामना नही करनी चाहिये। जैसे किसान निष्काम भाव से खेत में वीजारोपण करता है उसी प्रकार कामनाहोन बुद्धि से धर्म मे प्रवृत्त होना चाहिये । सासारिक सुख-रूप फल की कामना कदापि नही करना चाहिये । किसान को यह निश्चय नही होता कि मेरे बीजारोपण का परिणाम इस प्रकार का झाएगा, मगर उसे यह विश्वास अवश्य होता है कि वीज अगर अच्छा है तो फल खराब नहीं आयेगा । यद्यपि किसान यह नहीं जानता कि मेरे बोने से कितना फल उत्पन्न होगा, फिर भी वह बीजारोपण करता ही है । इसी प्रकार व्या.