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'दूसरा बोल-१४१
शब्दार्थ प्रश्न-हे भगवन् । निर्वेद से जोव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-निर्वेद से देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी कामभोगो मे शीघ्र ही उदासीनता आ जातो है, सब विषयो मे विरक्ति आ जातो है, आरभ का त्याग करके ससार के मार्ग को रोक देता है और मोक्ष मार्ग मे आरूढ होता है ।।२।।
व्याख्यान
सम्यक्त्वपराक्रम का यह दूसरा बोल है। इसमे यह बतलाया गया है कि सवेग उत्पन्न होने पर निर्वेद उत्पन्न होता ही है । मोक्ष की तीव्र अभिलाषा जाग उठने पर सासारिक सुख रुचिकर नहीं होते ।
सवेग और निर्वेद वर्णन करने के लिए ही दो वस्तुएँ हैं, बाकी तो सवेग उत्पन्न होने पर निर्वेद उत्पन्न होता ही है । जसे जोवो की रक्षा करना सयम है और जीवों की हिंसा न करना अहिंसा है, उसी प्रकार मोक्ष की अभिलाषा होना सवेग है और सासारिक भोगोपभोगो के त्याग की अभिलाषी होना अर्थात् ससार से विरक्ति पाना निर्वेद है। इस प्रकार सवेग और निर्वेद मे अविनाभाव सबध है 12
निवेद क्या है, इस विषय में जरा विचार करना चाहिए । निर्वेद का अर्थ करते हुए टीकाकार का कथन हैससार के विपय भोग त्यागने की अभिलाषा करना ही निर्वेद है। यद्यपि निर्वेद जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है, तथापि निर्वेद का सामान्य अर्थ इन सभी भेदो में घटित होता है ।