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पहला बोल-११३
ही लाखो जुल्म करता हो, मगर यदि वह भाई किसी तीसरे द्वारा दबाया जाता हो या पीडित किया जाता हो तो उसे पीडा-मुक्त करना भाई का धर्म है।
अर्जन पहले कहता था-दुर्योधन, गधर्व द्वारा कैद कर लिया गया, यह बहुत अच्छा हुआ । परन्तु युधिष्ठिर की आज्ञा होते ही वह गधर्व के पास गया । उसने दुर्योधन को बधनमुक्त करने के लिए कहा। यह सुनकर गधर्व ने अर्जुन से कहा- 'मित्र | तुम यह क्या कह रहे हो ? तुम इतना ही विचार नही करते कि दुर्योधन बडा ही दुष्ट है और तुम सबको मारने के लिए जा रहा था । ऐसी स्थिति में मैंने उसे पकड कर कैद कर लिया है तो बुरा क्या किया है ? इसलिए तुम अपने घर जाओ और इसे छुडाने के प्रयत्न
मे मत पडो । अर्जुन ने उत्तर दिया- दुर्योधन चाहे जैसा ___ हो आखिर तो हमारा भाई ही है, अतएव उसे बथनमुक्त
करना ही पड़ेगा।
___ अर्जुन तो भाई की रक्षा के लिए इस प्रकार कहता है, मगर आप लोग भाई-भाई कोट में मुकदमेबाजी तो नही करते ? कदाचित् कोई कहे कि हमारा भाई बहुत खराव है, तो उससे यही कहा जा सकता है कि वह कितना ही खराब क्यो न हो, मगर दुर्योधन के समान खराब तो नही है ! जब युधिष्ठिर ने दुर्योधन के समान भाई के प्रति इतनी क्षमा और सहनशीलता का परिचय दिया तो तुम अपने भाई के प्रति कितनी क्षमा और सहनशीलता का परिचय नही दे सकते ? मगर तुम मे भाई के प्रति इतनी क्षमा और सहनशीलता नही है और इसी कारण तुम भाई के खिलाफ न्यो