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पहला बोल-१०६
मगर आज के सघ मे ऐसी फूट पड गई है कि उसकी समस्त शक्तियां नष्ट हो रही हैं । भारत की फूट और असत्य, यह दो वस्तुएँ विदेशियो के लिए 'मेवा' के समान हैं। अगर यह दोनो वस्तुएँ भारत से हट जाएँ तो भारत विदेशियों के लिए 'मेवा' नही, वरन् 'सेवा' करने योग्य बन सकता है । सत्य और ऐक्य के द्वारा भारत का उत्थान हुए बिना नही रह सकता ।
सघ मे किस प्रकार की सगति होनी चाहिए, इस विषय मे एक उदाहरण लीजिये
भारतवर्ष मे युधिष्ठिर धर्मात्मा के रूप मे प्रसिद्ध हैं। जैन और अजैन, सभी युधिष्ठिर को महापुरुष और धर्मात्मा मानते है । दूसरी ओर दुर्योधन पापात्मा था। उसने भीम को नदी मे पटक दिया था और पाडवो के घर में आग सुलगा दी थी। फिर भी अपने पुण्यप्रताप से पाडव बच गये । दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जूए मे हराकर पाडवों को जगल मे भेज दिया था । जगल मे वे अनेको कष्ट भुगत रहे थे । पाडव स्वय बलवान् थे और फिर श्रीकृष्ण जैसे उनके सहायक थे । पाडव चाहते तो दुर्योधन को परास्त कर देना उनके वाएँ हाथ का खेल था। मगर युधिष्ठिर कहते थे-जो बात जीभ से कह दी है उसका पालन जीव को जोखिम में डालकर भी करना चाहिये । द्रौपदी इस विषय मे युधिष्ठिर को उपालभ देती और कहती-भीम और अर्जुन सरीखे बलवान् भाइयो को विपत्ति में डालने वाले तुम्ही हो । तुमने उन्हे कैसा दीन बना दिया है। मैं राजकन्या और राजपत्नी होकर भी जंगली अन्न से उदरपूर्ति करती है। इसके कारण भी तुम्ही हो ।