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पहला बोल - १०७
को ससार की तुच्छ वस्तु के बदले न बेचने के कारण आपकी दस बोलो की प्राप्ति की सुविधा होगी । 2
श्री उत्तराध्ययनसूत्र मे दस बोलो का वर्णन करते हुए
कहा है
खित्तं वत्थु हिरण्ण च, पसवो दासपोरुसं चत्तारि कामखघाणि, तत्थ से उबवज्ज्इ मित्तव नाइव होइ, उच्चगोए य वर्णव । श्रपायके महापन्ने, अभिजाए जसो बले ॥ - अ० ३, गा १७-१८.
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अर्थात् - जो पुरुष संसार के सुखो में न ललचा कर अनुत्तर धर्म पर श्रद्धा रखता है और अपने सवेग की वृद्धि करना चाहता है, वह अपनी धर्मश्रद्धा के फलस्वरूप, कदाचित् वर्तमान भव मे ही मोक्ष प्राप्त न करे तो देवलोक में अवश्य जाता है और वहाँ की सात प्रधान पदवियो मे से एक पदवी प्राप्त करता है । तत्पश्चात् वह देवलोक के सुख भोग कर, नीची गति मे न जाकर मनुष्य भव ही प्राप्त करता है और उसे वहाँ उत्तम (१) क्षेत्र, वास्तु, चादी - सोना, पशु तथा दास ( २ ) मित्र (३) ज्ञाति (४) उच्च गोत्र (५) सुन्दर शरीर ( ६ ) नीरोगता ( ७ ) वुद्धि ( ८ ) कुली - नता ( 2 ) यश और (१०) बल, इन दस वोलो को सुविधा मिलती है ।
ऊपर कहे दस वोलो मे पहला बोल उत्तम क्षेत्र है । भगवान् ने जीवन की आवश्यक वस्तुओं मे क्षेत्र को प्रथम स्थान दिया है । क्षेत्र (खेत) में अन्न उत्पन्न न हो तो जीवन टिक ही नही सकता । जीवन अन्न के आधार