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________________ १०४- सम्यक्त्वपराक्रम (१) लता दिखलाई जायेगी तो वह कैसे जीती जायेगी । कुत्ता घर मे घुसकर खाने योग्य वस्तु खा जाता है । कुत्ते का यह स्वभाव है । पर क्या तुम स्वेच्छा से कुत्ते को घर मे घुसने देते हो ? कदाचित् श्रसावधानी से घुस भी जाये तो क्या उसे बाहर नही निकालते ? काम, क्रोध आदि कषाय भी कुत्ते के समान हैं । इन कषाय रूपी कुत्तो को पहले तो आत्मा रूपी घर मे घुसने ही नही देना चाहिए और कदाचित् घुस पडे तो उसी समय बाहर निकाल देना चाहिए । हम तो छद्मस्थ है, ऐसा सोचकर जो काम क्रोध को वाहर नही निकालेगा वह छद्मस्थ ही बना रहेगा । अतएव काम आदि अतरग शत्रुओ को सर्वप्रथम बाहर निकालना चाहिए । तुम नमस्कारमत्र का स्मरण तो प्रतिदिन करते होगे ? उस मंत्र का पहला पद ' णमो अरिहताण' है । अर्थात् जिन्होने अतरग शत्रुओं को जीत लिया है, उन्हे नमस्कार हो । उन्होने काम क्रोध आदि अतरग शत्रुओ को जीत लिया है वह जितशत्रु वीतराग भगवान् ही मेरे देव है । अगर यह बात जानते हो और फिर भी आतरिक शत्रुओ को जीतने का प्रयत्न नही करते तो यह तुम्हारी कायरता ही गिनी जायेगी । अतएव आतरिक शत्रुओ पर विजय प्राप्त करके धर्म पर श्रद्धा धारण करो और फिर मोक्ष की इच्छा से सवेग की वृद्धि किये जाओ । दुनिया मे जगह-जगह दिखाई देता है कि लोग काम-लालसा से प्रेरित होकर देवी-देवता के नाम पर अनेक निरपराधी जीवो का बलिदान करते है और समझते है कि ऐसा करने से हम सुखी हो जाएँगे । परम्परागत सस्कारो के कारण तुम इस हिंसा से बचे हुए हो, किन्तु साथ ही यह देखने की आवश्यकता है कि तुम्हारे अन्त करण से काम -
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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