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पहेला बोले-६५ हैं । तुम आनन्दपूर्वक जाओ और इसके दिये साहित्य को भी मत ले जायो ।
माता ! अब वह पथिक किसकी बात मानेगा ? ..मगापुत्र की माता क्षत्रियाणी और विचक्षण थी । उसने मगापुत्र के प्रश्न के उत्तर में कहा-हे पुत्र । पहला मनुष्य भी जंगल मे जाने का एकान्त निषेध नही करता । वह केवल यही, कहता है कि अगर तुम जगल के रास्ते जाना चाहते हो तो हमारा साहित्य लेते.-जाओ, जिससे रास्ते मे कठिनाई न हो। वह जो साहित्य देता है उसके बदले में कुछ माँगता भी नही है । दूसरा मनुष्य कहता है कि जगल का रास्ता खराव नही है अतएव जाओ और साथ मे साहित्य मत ले जाओ । कदाचित् दूसरे आदमी का ही कहना सही हो तो भी पहले श्रादमी का दिया साहित्य साथ ले जाने में हर्ज ही क्या है। 5 इस व्यावहारिक उदाहरण को सभी लोग समझ सकते है। मगर यह भी समझो कि परलोक का मार्ग कैसा कठिन है और वहाँ कौन सहायक है ? परलोक के मार्ग में भी उदाहरण मे कहे हुए दो मनुष्य खडे हैं। उनमे 'एक भगवान महावीर हैं या उनके समान 'अन्य 'कोई' हैं और दूसरा कोई अन्य मत वाला मनुष्य है । यह अन्य मत वाला कहता हैखाओ पीओ मजे उडायो । धर्म-कर्म और स्वर्ग-नरक किसने देखा है ? विघ्नसतोषी मनुष्य के इस प्रकार कहने पर भगवान् महावीर या उनके समान मान्यता वाला कहता हैपरलोक के मार्ग मे बहुत कठिनाइयां हैं, बड़े कष्ट है। उस मार्ग मे रोग-दु.ख वगैरह बहुत-से काँटे विखरे है, इसलिए