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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
२३७ कोई दो वस्तुयें एकरूप होकर तीसरी नई प्रकारको वस्तु उत्पन्न नहीं होती, क्योंकि वस्तुका स्वरूप कदापि अन्यथा नहीं होता।
(६) प्रदेशत्व गुणके कारण प्रत्येक द्रव्यके अपना आकार होता है। प्रत्येक द्रव्य अपने अपने निज आकारमें ही रहता है। सिद्ध दशाके होनेपर एक जीव दूसरे जीवमे मिल नही जाता किन्तु प्रत्येक जीव अपने प्रदेशाकार स्वतंत्र रूपसे स्थिर रहता है।
यह छह सामान्य गुण मुख्य है, इनके अतिरिक्त अन्य सामान्य गुण भी हैं। इसप्रकार गुणोके द्वारा द्रव्यका स्वरूप अधिक स्पष्टतासे जाना जाता है।
-प्रयोजन भूत-- इसप्रकार छह द्रव्यके स्वरूपका अनेक प्रकार वर्णन किया है। इन छह द्रव्योंमें प्रति समय परिणमन होता रहता है, जिसे पर्याय (अवस्था, हालत, Condition ) कहते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार द्रव्योंकी पर्याय तो सदा शुद्ध ही है, शेप जीव और पुद्गल द्रव्यों में शुद्ध पर्याय होती है और अशुद्ध पर्याय भी हो सकती है।
जीव और पुद्गल द्रव्योंमें से पुद्गल द्रव्यमें ज्ञान नहीं है, उसमें ज्ञातृत्व नहीं है और इसलिये उसमें ज्ञानकी विपरीत रूप भूल नहीं है, इसलिये पुद्गलके सुख अथवा दुःख नहीं होता। सच्चे ज्ञानसे सुख और विपरीत ज्ञानसे दुःख होता है, परन्तु पुद्गल द्रव्यमें ज्ञान गुण ही नहीं है इसलिये उसके सुख दुःख नहीं होता उसमें सुख गुण ही नहीं है। ऐसा होनेसे पुद्गल द्रव्यके अशुद्ध दशा हो या शुद्धदशा हो, दोनों समान है। शरीर पुद्गल द्रव्यकी अवस्था है इसलिये शरीरमें सुख दुःख नहीं होते। शरीर निरोगी हो अथवा रोगी हो उसके साथ सुख दुःखका सम्बन्ध नही है।
-अवशेष रहा ज्ञाता जीवछह द्रव्यों में यह एक ही जीव द्रव्य ज्ञान शक्तिवाला है। जीवमें ज्ञानगुण है और ज्ञानका फल सुख है जीवमें सुख गुण है। यदि यथार्थ
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