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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
२३१ . अब टोपी घड़ी होकर ज्यों की त्यों स्थिर पड़ी है उसमें कौन निमित्त है. आकाश द्रव्य तो मात्र स्थान दानमें निमित्त है टोपीके चलने अथवा स्थिर रहनेमें आकाश निमित्त नहीं है। जब टोपीने सीधी दशामें से टेढ़ी दशा रूप होनेके लिये गमन किया तब धर्म द्रव्यका निमित्त था, तो अब स्थिर रहने की. क्रियामें उससे विपरीत निमित्त होना चाहिये। गतिमें धर्म द्रव्य निमित्त था और अब स्थिर रहनेमें अधर्म द्रव्य निमित्त रूप है। पहले टोपी सीधी थी, अब घड़ी वाली है और अब वह अमुक समय तक रहेगा-जहाँ ऐसा जाना वहाँ 'काल' सिद्ध होगया। भूत, भविष्यत, -वर्तमान अथवा नया-पुराना-दिन-घंटे इत्यादि जो भी भेद होते हैं वे सब किसी एक मूल वस्तुके बिना नहीं हो सकते हैं। उपर्युक्त सभी भेद काल द्रव्यके हैं। यदि काल द्रव्य न हो तो नयापुराना पहले-पीछे इत्यादि कोई भी प्रवृत्ति नहीं हो सकती इसीसे काल द्रव्य सिद्ध होगया।...
. , इन छह द्रव्योंमेंसे यदि एक भी द्रव्य न हो तो जगत व्यवहार नहीं चल सकता। यदि पुद्गल नहीं हो तो टोपी नहीं हो सकती, यदि जीव न हो तो टोपीका अस्तित्व कौन निश्चित करेगा ? यदि आकाश न हो तो यह नहीं जाना जा सकता कि टोपी कहा है। यदि-धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य न हो तो दोपीमें होने वाला परिवर्तन (क्षेत्रान्तर और स्थिरता) नहीं जाना जा सकता। यदि काल द्रव्य न हो तो पहले जो टोपी सीधी थी वही 'श्रब' घड़ी वाली है-इस प्रकार पहले टोपीका अस्तित्व निश्चित नहीं हो सकता, इसलिये टोपीको सिद्ध करनेके लिये छहों द्रव्योंको स्वीकार करना होता है। विश्वकी किसी भी एक वस्तुको स्वीकार करने पर व्यक्त रूपसे अथवा अव्यक्त रूपसे छहों द्रव्योंकी स्वीकृति हो जाती है।
___ मानव शरीरको लेकर छह द्रव्योंकी सिद्धि.
यह दृष्टिगोचर होनेवाला शरीर पुद्गल निर्मित है, और इस शरीरमें जीव रहता है। जीव और पुद्गल एकही आकाश-स्थलमें रहते