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________________ २२८ -# सम्यग्दशन 'आकाशं द्रव्य' कहा जाता है । यह द्रव्य ज्ञान रहित है और अरूपी है। उसमें रूप, रस, गंध इत्यादि नहीं है। . ६-कालद्रव्य __ लोग दस्तावेजमें यह लिखवाते हैं कि “यावत् चन्द्र दिवाकरौंअर्थात् जब तक सूर्य और चन्द्रमा रहें तब तक हमारा अधिकार है।" यहाँ पर कालद्रव्यको स्वीकार किया गया है,। वर्तमान मात्रके लिये ही अधिकार हो सो बात नहीं है किन्तु अभी काल आगे बढ़ता जा रहा है उस समस्त कालमें मेरा अधिकार है। इसप्रकार काल द्रव्यको स्वीकार करते हैं । लोग कहा करते हैं कि हम और हमारा परिवार सदा फलता फूलता रहे इसमें भी भविष्य कालको स्वीकार किया है। यहाँ तो मात्र काल द्रव्यको सिद्ध करनेके लिये फलने फूलने की बात है, फलते फूलते रहनेकी भावना तो मिथ्यादृष्टि की ही है। लोग कहा करते हैं कि हम तो सात पीढ़ीसे सुखी रहते आ रहे हैं, इसमें भी भूतकालको स्वीकार किया है। भूत, भविष्यत और वर्तमान इत्यादि सभी प्रकार 'काल द्रव्य' की व्यवहार पर्याय हैं। यह काल द्रव्य भी अरूपी है और ज्ञान रहित है। ___ इसप्रकार जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश,और काल इन छह द्रव्योंकी सिद्धि की गई है। इनके अतिरिक्त अन्य सातवॉ कोई द्रव्य है ही नहीं। इन छह द्रव्यों में से एक भी द्रव्य कम नहीं है, ठीक छह ही हैं, और ऐसा माननेसे ही यथार्थ वस्तुकी सिद्धि होती. है। यदि इन छह द्रव्योंके अतिरिक्त कोई सातवां द्रव्य हो तो उसका कार्य बताइये । ऐसा कोई कार्य नहीं है जो इन छह द्रव्योंसे बाहर हो, इसलिये यह सुनिश्चित् है कि कोई सातवॉ द्रव्य है ही नहीं। और यदि इन छह द्रव्योंमेंसे कोई एक द्रव्य कम हो तो उस द्रव्यका कार्य कौन करेगा ? छह द्रव्योंमेंसे एक भी ऐसा नहीं है जिसके विना विश्वका विषय-व्यवहार चल सके। (१) जीव-इस जगतमें अनंत जीव हैं. जीव जानपने चिह (विशेष गुण.) के द्वारा पहिचाना जाता है, क्योंकि जीवके अतिरिक्त किसी
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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