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________________ १६४ - सम्यग्दर्शन है, विकार है वह आत्मा नहीं है, उस विकल्पके अवलम्बनसे आत्मानुभव नहीं होता। मै अबन्ध स्वरूप हूँ ऐसे विचारका अवलम्बन निश्चयनयका पक्ष (राग) है और मैं वन्धा हुआ हूँ ऐसे विचारका अवलम्बन व्यवहार का पक्ष ( राग ) है । यह नयपक्ष बुद्धि मिथ्यात्व है । इस विकल्परूप निश्चयनयका पक्ष जीवने पहले अनन्त बार किया है, परन्तु स्वभावका आप्रय रूप निश्चयनय कभी प्रगट नहीं हुआ। समयसारकी ग्यारहवीं गाथाके भावार्थमें कहा है कि 'शुद्ध नयका पक्ष कभी नहीं हुआ', यहाँ 'शुद्ध-नयका पक्ष' कहा है, वह मिथ्यात्वरूप या रागरूप नहीं है, क्योंकि त्रिकाल शुद्ध स्वभावका आश्रय करना सो उसे ही वहाँ शुद्ध नयका पक्ष' कहा है और वही सम्यग्दर्शन है। वहाँ जिसे शुद्ध नयका पक्ष कहा है उसे यहाँ 'नयातिक्रांत' कहा है और वह मुक्तिका कारण है। ग्यारहवीं गाथामें यह कहा है कि “प्राणियोंके भेद रूप व्यवहारका पक्ष तो अनादिसे ही है," वहाँ जिसे भेद रूप व्यवहारका पक्ष कहा है उसमें, इस गाथामें कहे गये दोनों पक्षका समावेश हो जाता है। निश्चयनयके विकल्पका पक्ष करना भी भेदरूप व्यवहारका ही पक्ष है, इसलिये वह भी मिथ्यात्व है। जैसा शुद्ध स्वभाव है वैसे स्वभावका आनय करना सो सम्यग्दर्शन है, किन्तु 'शुद्ध म्वभाव हूँ ऐसे विकल्पके साथ एकत्वबुद्धि करना नो मिथ्यात्व है। आत्मा राग स्वरूप है ऐसा मानना सो व्यवहारका पक्ष हैस्थूल मिथ्यात्व है। और आत्मा शुद्ध स्वरूप है। ऐसे विकल्पमें अटकना सो विकल्पात्मक निश्चयनयका पन है-रागका.पक्ष है। श्री प्राचार्यम्य काहने हैं कि "मै शुद्ध हूँ ऐसे विकल्पके श्रवलन्धनले आत्माका विचार किया गो उससे क्या ? आत्माका स्वभाव वचन और विकल्यानीन है। आमा र और परिपूर्ण स्वभावी है, वह स्वभाव निजसे ही है, साम्यवारगे या fre. ल्पके आधारसे वह स्वभाव नहीं है, और इसलिये उम भार नुमा (निर्णय ) करनेके लिए किसी शान्त्राधार या विकल्प it
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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