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- सम्यग्दर्शन (४१) सम्यग्दर्शन बिना सब कुछ किया
लेकिन उससे क्या ? [आत्मानुभवको प्रगट करनेका उपाय बतानेवाला एक मननीय व्याख्यान ]
एक मात्र सम्यग्दर्शनके अतिरिक्त जीव अनंतकालमें सब कुछ कर चुका है, लेकिन सम्यग्दर्शन कभी एक क्षण मात्र भी प्रगट नहीं किया। यदि एक क्षणमात्र भी सम्यग्दर्शन प्रगट करे तो उसकी मुक्ति हुए बिना न रहे।
_ आत्म कल्याणका उपाय क्या है सो वताते हैं। विकल्प मात्रका अवलंबन छोड़कर जबतक जीव शुद्धात्म स्वभावका अनुभव न करे तयतक उसका कल्याण नहीं होता। शुद्धात्म स्वरूपका अनुभव किये विना जीव जो कुछ भी करता है वह सब व्यर्थ है, उससे आत्मकल्याण नहीं होता।
कई जीव यह मानते हैं कि हमें पांच लाख रुपया मिल जायें तो हम सुखी हो जायें। किन्तु ज्ञानी कहते हैं कि हे भाई । यदि पॉच लाख रुपया मिल गये तो इससे क्या ? क्या रुपयोंमें आत्माका सुख है ? रुपया तो जड़ है, वे कहीं आत्मामें प्रवेश नहीं कर जाते, और उसमें कहीं आना का सुख नहीं है। सुख तो आत्मस्वभावमें है। उस स्वभावका अनुभव नहीं किया तो फिर रुपया मिलाये इससे क्या ? जब कि आत्मस्वभावकी प्रतीति नहीं है तव रुपयोंमें ही सुख मानकर, रुपयोंके लक्षसे उल्टा श्राकुलतास ही वेदन करके दुःखी होगा।
प्रश्न-जवतक आत्माका अनुभव नहीं होता तब तक व्रत, वप इत्यादि करनेसे तो कल्याण होता है न ?
___उत्तर-आत्म प्रतीतिके विना व्रत तपादिका शुभ राग किया नो इससे क्या ? यह तो राग है, जिससे आत्माको बन्धन होना है और उसमें धर्म माननसे मिथ्यात्वकी पुष्टि होती है आत्मानुभवके धिना फिमी भी प्रकार सुख नही, धर्म नहीं, और कल्याण नहीं होता।