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- सम्यग्दर्शन धारण करनी चाहिये। जिस नीवको द्रव्यदृष्टि प्राप्त होगई उसकी मुक्ति होगी ही, और जिसे यह दृष्टि प्राप्त नहीं हुई उसको मुक्ति हो ही नहीं सकती इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति दृष्टिके आधीन है। (५) ज्ञान भी दृष्टि के आधीन है।
जिस जीवको द्रव्यदृष्टि नहीं, उसका ज्ञान सच्चा नहीं। भले ही जीव ग्यारह अंगका ज्ञान प्राप्त करले, परन्तु यदि द्रव्यदृष्टि प्राप्त नहीं तो वह सर्वज्ञान मिथ्या है। और भले ही नव तत्त्वोंके नाम भी न जानता हो, परन्तु यदि उसे द्रव्य दृष्टि प्राप्त है तो उसका ज्ञान सच्चा है। सम्यग्दर्शनको नमस्कार करते हुये श्रीमद् राजचन्द्रजी फरमाते है कि "अनन्तकालसे जो ज्ञान भवका कारण होता था उस बानको एक क्षणमें जात्यंतर करके जिसने भव निवृत्तिरूप परिणत कर दिया उस कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शनको नमस्कार हो।" द्रव्यदृष्टि रहित ज्ञान मिथ्याज्ञान है और संसारका कारण है। द्रव्य दृष्टि प्राप्त करते ही वह ज्ञान सम्यक्पना प्राप्त करता है। इसलिये ज्ञान भी दृष्टिके आधीन है।* (६) विपरीतदृष्टि की विपरीतताका माहात्म्य
जिन जीवोंको उपर्युक्त द्रव्यदृष्टि नहीं होती उन्हें विपरीत दृष्टि होती है । (विपरीतदृष्टिके अन्य अनेक नाम हैं-जैसे कि मिथ्यादृष्टि, व्यवहारदृष्टि, अयथार्थदृष्टि, मूठीदृष्टि, पर्यायदृष्टि, विकारदृष्टि, अभूतार्थदृष्टि, ये सव एकार्थवाचक शब्द हैं।) यह विपरीतदृष्टि एक समयमें अखंड परिपूर्ण स्वभावको नहीं मानती है। अर्थात् इस दृपिमें अखंड परिपूर्ण वस्तुको न माननेकी अनन्त विपरीत सामर्थ्य भरी हुई है। पूर्ण स्वभावका निरादर करनेवाली दृष्टि अनन्त २ संसारका कारण है। और ऐसी दृष्टि • नोट-द्रव्यदृष्टि कहो या भात्मस्वत्पको पहिचान बही एक ही बात
है। इसीतरह सम्यग्दृष्टि, परमार्थदृष्टि, यस्तुष्टि, सभापदृष्टि यथाष्टि, नुतार्थदृष्टि ये सब एकार्य वाचक हैं।