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-राजा और प्रजा ।
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परिणाम इस प्रकारके गुप्त विप्लवका विलक्षण आयोजन हो, तो उसका उत्तरदायित्व और दुःख बंगाली मात्रको स्वीकृत करना पड़ेगा । जिस समय मेरे शरीरमें भस्माभूत ज्वर चढ़ा हो उस समय हाथकी हथेली केवल यह कहकर ही मृत्युके अवसरपर अपने आपको साधु और सिरको सारे अनर्थों की जड़ बतलाकर छुटकारा नहीं पा सकती कि हम तो सिरकी अपेक्षा अधिक ठंढे थे । हमने इस बातको अच्छी 1 तरह नहीं सोचा कि हम क्या करेंगे और क्या करना चाहते हैं । हम यही जानते हैं कि हमारे कलेजे में आग लगी हुई थी। उस आग के गिर पड़नेसे स्वभावतः गीली लकड़ी धुआँ देने लगी, सूखी लकड़ी जलने लगी और घरमें जहाँ कहीं मिट्टीका तेल था वह अपनेको न सँभाल सकने के कारण टीनका शासन हटाकर भयंकर रूपसे भड़क उठा ।
जो हो, कार्य्यं और कारणका पारस्परिक योग अथवा व्याप्ति चाहे जिस प्रकार हुई हो, पर जब आग भड़क उठी तब सत्र तर्क छोड़ कर उस आग को बुझाना पड़ेगा । इस सम्बन्धमें मतभेदसे काम न निकलेगा ।
मुख्य बात यह है कि कारण अभी देशसे दूर नहीं हुआ। लोगोंका चित्त उत्तेजित हो गया है और यह उत्तेजना इतनी अधिक बढ़ गई है कि पहले जो सांघातिक व्यापार हमारे देशके लिये बिलकुल ही असम्भव मालूम होते थे वे ही अब सम्भव हो गए हैं । विरोध -बुद्धि इतनी गम्भीर और बहुत दूर तक व्याप्त हो गई हैं कि हमारे शासक बलपूर्वक इसे केवल यहाँ वहाँसे उखाड़नेकी चेष्टा करके ही कभी उसका अन्त न कर सकेंगे, बल्कि इसे और भी प्रबल कर डालेंगे ।
यदि हम इस बात की आलोचना करने लगें कि वर्त्तमान संकटके समय हमारे शासकोंका क्या कर्तव्य है, तो हमें इस बातकी आशा