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अत्युक्ति ।* पृथ्वीके पूर्वकोणके लोग अर्थात् हम लोग अत्युक्तिका बहुत अधिक व्यवहार करते हैं । अपने पश्चिमीय गुरुओंसे हम लोगोंको इस सम्बन्धमें अकसर उलटी सीधी बातें सुननी पड़ती हैं। जो लोग सात समुद्रपारसे हम लोगोंके भलेके लिये उपदेश देने आते हैं, हम लोगोंको उचित है कि सिर झुकाकर चुपचाप उनकी बातें सुना करें। क्योंकि वे लोग हमारे जैसे अभागोंकी तरह केवल बातें करना ही नहीं जानते
और साथ ही वे लोग यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि बातें किस तरह मुनी जाती हैं। और फिर हम लोगोंके दोनों कानोंपर भी उनका पूरा अधिकार है।
लेकिन हम लोगोंने डाँट-डपट और उपदेश तो बार बार मुना है और हम लोगोंके स्कूलोंमें पढ़ाए जानेवाले भूगोलके पृष्ठों और कन्योकेशन (Convocation ) से यह बात अच्छी तरह प्रतिध्वनित होती है कि हम लोग कितने अधम हैं। हम लोगोंका क्षीण उत्तर इन बातोंको दवा नहीं सकता; लेकिन फिर भी हम बिना बोले कैसे रह सकते हैं ? अपने झुके हुए सिरको हम और कहाँतक झुकावेंगे ?
सच बात तो यह है कि अत्युक्ति और अतिशयिता सभी जातियोंमें है। अपनी अत्युक्ति बहुत ही स्वाभाविक और दूसरोंकी अत्युक्ति
* जिस समय दिल्ली-दरवारकी तय्यारियाँ हो रही थी, यह लेख उस समय लिखा गया था।