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राजा और प्रजा। ६८ माना कर दिया वही कारण हम लोगोंकी जातिकी नसनसमें घुसा हुआ है। हम स्वयं ही अपने हाथों अपनी जातिके लोगोंका जो सम्मान करना नहीं जानते, हम लोग आशा करते हैं कि अँगरेज हम लोगोंका वही सम्मान आपसे आप करेंगे!
एक भारतवासी जब चुपचाप मार खाता है और दूसरा भारतवासी उस दृश्यको कुतूहलपूर्वक देखता है और जब बिना किसी प्रकारकी लज्जाके भारतवासी यह बात स्वीकृत करते हैं कि किसी भारतवासीके हाथसे इस अपमानके प्रतिकारकी आशा नहीं की जा सकती, तब यही समझना चाहिए कि अँगरेजोंके द्वारा हत और आहत होनेका मूल और प्रधान कारण स्वयं हम लोगोंके स्वभावमें ही है और इस कारणको सरकार किसी प्रकारके कानून अथवा विचारके द्वारा कभी दूर नहीं कर सकती। ___ हम लोग जब यह सुनते हैं कि किसी अँगरेजने एक भारतवासीका अपमान किया है तब चट आक्षेप करते हुए कह बैठते हैं कि वह अँगरेज किसी दूसरे अँगरेजके ही साथ कभी ऐसा व्यवहार न करता। ग्वैर, यह मान लिया कि वह किसी दूसरे अँगरेजके साथ ऐसा व्यवहार न करता लेकिन अँगरेजके ऊपर क्रोध करनेकी अपेक्षा यदि हम स्वयं अपने ही ऊपर क्रोध करें तो इससे कुछ अधिक फल हो सकता है। जिन जिन कारणोंसे एक अँगरेज सहसा किसी दूसरे अँगरेजपर हाथ छोड़नेका साहस नहीं करता यदि वे ही सब कारण उसे हमपर हाथ छोड़ते समय नजर आने लगें तो हमारे साथ भी वैसा ही अनुकूल आचरण हो और हम लोगोंको इस प्रकार गिड़गिड़ाकर रोना गाना न पड़े। __ पहले तो हमें अच्छी तरह यही देखना चाहिए कि एक भारतवासीके साथ दूसरा भारतवासी कैसा व्यवहार करता है। क्योंकि हम