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________________ राजा और प्रजा । कि जीवनकी पवित्रता अर्थात् जीवनमें हस्तक्षेप करने (हत्या करने अथवा हत्याकी चेष्टा करने की परम दूषणीयताके सम्बन्धमें भारतवासियोंकी धारणा अँगरेजोंके मुकाबलेमें बहुत ही परिमित और कम है। इसीलिये भारतवासी जूरियोंके मनमें किसी हत्या करनेवालेके प्रति यथोचित विद्वेष उत्पन्न नहीं होता। जो लोग मांस खानेवाली जातिके हैं और जिन्होंने बड़े बड़े रोमाञ्चकारी हत्याकाण्ड करके पृथ्वीके दो नए आविष्कृत महादेशोंमें अपने रहनेके लिये स्थान साफ कर लिया है और जो इस समय तलवारके जोरसे तीसरे महादेशकी भी प्रच्छन्न छातीको धीरे धीरे फाड़ करके उसकी कुछ फसलको सुखसे खानेके उद्योगमें लगे हुए हैं, वे ही यदि निमन्त्रण-सभामें मजेमें और अहंकार करते हुए नैतिक आदर्शके ऊँचे दण्डपर चढ़ बैठे और उसीपरसे जीवनकी पवित्रता और प्राणहिंसाकी अकर्त्तव्यताके सम्बन्धमें अहिंसक भारतवर्षको उपदेश देने लगें तब केवल 'अहिंसा परमो धर्मः' इस शास्त्रवाक्यका स्मरण करके ही चुप रह जाना पड़ता है। ___ यह बात आजसे प्रायः दो वर्ष पहलेकी है ।* सभी लोग जानते हैं कि इस घटनाके बाद अबतक इन दो वर्षोंमें अँगरेजोंके हाथों बहुतसे भारतवासियोंकी अपमृत्यु हुई है और अँगरेजी अदालतोंमें इन सब हत्याओंमें एक अँगरेजका भी दोप प्रमाणित नहीं हुआ। समाचारपत्रोंमें इस सम्बन्धमें बराबर समाचार देखनेमें आते हैं और जब कोई ऐसा समाचार देखनेमें आता है तब हमें भारतवासियोंके प्रति उसी मुंड़ी हुई मोछ और दाढी तथा लम्बी नाकवाले अध्यापककी ___* यह निबंध सन् १३०१ फसलीमें अर्थात् आजसे प्रायः २५ वर्ष पहले लिखा गया था।-अनुवादक ।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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