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________________ ५ अँगरेज और भारतवासी । इसीमें अँगरेजोंका दोष है । वे किसी प्रकार घरमें ( ठिकानेपर ) आना ही नहीं चाहते । किन्तु दूर ही दूरसे, बाहर ही बाहरसे, सब प्रकारका स्पर्श आदि तक भी बचाकर मनुष्यके साथ किसी प्रकारका व्यवहार नहीं किया जा सकता । आदमी जितना ही अधिक दूर रहता है उसको विफलता भी उतनी ही अधिक होती है। मनुष्य कोई जड़ यंत्र तो है ही नहीं, जो वह बाहरसे ही पहचान लिया जा सके । यहाँ तक कि इस पतित भारतवर्षके भी एक हृदय है और उस हृदयको उसने अपने अँगरखेकी आस्तीनमें नहीं लटका रक्खा है । जड़ पदार्थको भी विज्ञानकी सहायतासे बहुत अच्छी तरह पहचानना पड़ता है और तभी जाकर जड़ प्रकृतिपर पूर्ण रूपसे अधिकार किया जा सकता है । इस संसारमें जो लोग अपने स्थायी प्रभावकी रक्षा करना चाहते हैं उनके लिये अन्यान्य अनेक गुणोंके साथ साथ एक इस गुणका होना भी आवश्यक है कि वे मनुष्योंको बहुत अच्छी तरहसे पहचान सकें, उनके हृदयके भाव समझ सकें। मनुष्यके बहुत ही पास पहुँचनेके लिये जिस क्षमताकी आवश्यकता होनी है वह क्षमता बहुत ही दुर्लभ है। अंगरेजोंमें बहुत सी क्षमताएँ हैं किन्तु यही क्षमता नहीं है। वे बल्कि उपकार करनेसे पीछे न हटेंगे किन्तु किसी प्रकार मनुष्यक पास जाना न चाहेंगे । वे किसी न किसी प्रकार उपकार करके चटपट अपना पीछा छुड़ा लेंगे और तब क्लबमें जाकर शराब पाएँगे, बिलियर्ड खेलेंगे और जिसके साथ उपकार करेंगे उसके सम्बन्धमें अवज्ञाविषयक विशेषणोंका प्रयोग करते हुए उसके विजातीय शरीरको यथासाध्य अपने मनसे दूर कर देंगे।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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