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शत्रुनाशक, पूज्यतानो वाचक तथा शब्द ब्रम्हनो सूचक होवाथी गात रसोत्पादक छे शात रस, समता रस, उपशम रस ए बधा शब्दो एकार्थक छे रागद्वेष अने सुखदुखना सवेदनथी पर एवो ज्ञानरस एज अही समरस छे, एज समता रस छे अने एज गातरस छे 'नमो अरिहताण' ए मत्र ज्ञान चेतना प्रत्ये भक्ति उत्पन्न करी तेमाज जीवने तल्लीन बनावे छे
'नमो' मंत्र अनाहत स्वरूप छे
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'नमो' मत्र उच्चारणमा सरळ अर्थ रक्षणहार, अने फळथी ऊर्ध्वतिऊर्ध्व गतिमा लई जनार छे, तेथी महामत्र छे उच्चारण करती वखतेज सर्व प्राणोने उचे लई जाय छे, सर्व प्राणोने परमात्मामा विलीन करी आपे छे शब्दथी सरळ, अर्थथी मंगळ, अने गुणथी सर्वोच्च छे नम्रता ए सर्व गुणोनी टोच छे पोतानी जातने अणुथी पण अणु जेटली माननारज महानथी महान तत्त्वनी साथ सबधमा आवी शके छे पूर्णता ए शून्यतानुज सर्जन छे 'नमो' मत्रमा शून्यता छुपाएली छे तेथीज ए पूर्णतानुकारण वने छे 'नमो' ए अनाहत स्वरूप छे केम के ते भाव प्रधान छे. ज्ञान अक्षरात्मक छे, अने माव अनक्षरस्वरूप छे तेी ते आलेखन अनाहत द्वाराज थई शके छे वली ज्ञानोपयोगती स्थिति अतर्मुहुर्तथी वधु नथी, ज्यारे भावनी स्थिति अव्याहत छे कायमी छे, तेथी तेनु आलेखन के आकलन शब्दद्वारा थई शकतु नथी परमात्मा ज्ञानग्राह्य नथी, पण भावग्राह्य छे 'नमो' पद ए भाव अने भक्तिस्वरूप होवाथी ने द्वाराज परम तत्त्वनी अनुभूति थई शके छे छद्मस्यो माटे ज्ञाननो ज्या अत छे, त्या भावनो प्रारभ छे ज्ञान द्वैत स्वरूप छे,
श्री कुभोजगिरी शताब्दि महोत्सव ]
ज्यारे भाव अद्वैत स्वरूप छे, तेथी परमात्मा साथ अद्वैत नमस्कार भाव द्वाराज साधी शकाय छे
रूची अनुयायी वीर्य :
नमस्कार भाव प्रशशात्मक छे, आदर प्रीति अने बहुमान वाचक छे नमस्कार भाववडे परतत्त्य प्रत्येनी अभिरूचि प्रगट कराय छे ज्या रुची त्या वीर्य प्रवृत्तं थाय छे तेथी आत्मानु वीर्य अने आत्मानी शक्तिने परमात्मभाव प्रत्ये वाळवा माटे एक 'नमो' भावद्वारा प्रगटती रूचिमाज सामर्थ्य छे भावनी उत्पत्ती ज्ञानथी छे पण ज्ञान पोते भावस्वरूप नथी भावमा ज्ञान तो छेज परतु तेथी काईक अधिक छे माटे भाव अधिक पूज्य छे भावशून्य ज्ञानती किमत कोडीनी नथी ज्ञानथी युक्त पण शुद्ध भावनी किमत अगणित छे परमात्मा मनोमय ज्ञानानदमय छे तेथी ते भावग्राह्य छे सर्व भावोमा श्रेष्ठ भाव नमस्कारतो भाव छे नमस्कार भावमा नमस्कार्य प्रत्ये सर्वस्वनु दान अने सर्वस्वनु समर्पण कराय छे, तेथी तेनु फळ अगणित, अचित्य, अप्रमेय छे सर्व पापने भेदवा माटे ते समर्थ छे सर्व मगळोने आकर्षवा माटे ते अमोध छे
अनाहत भावनुं सामर्थ्य :
अनाहतना आलेखनमा त्रण आटा विगेरे भावना ( Spiral) ने जाणवे छे, उत्तरोत्तर भावनी वृद्धिना सूचक छे, आगमनो सार नमोभाव ' छे मत्र अने यत्रनो सार अनाहत छे 'नमो' भाव समता भावनी वृद्धि करे छे ये समता अनाहत छे तेने सुचववा साडा त्रण आटानु आलेखन छे ए रीते अनाहत ध्वनि पण अटक्या विना चाल्या करे छे ते
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