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(७६) इमजाणीनेविनयसाचवोरे।जाणीनिजहितउपकाररे।। पुत्रने शिष्य जाणो सरीखारे ।आपे ते ज्ञान भन्डाररे
॥ विनय ॥६॥ अहंकारी क्रोधीप्रमादीहोवेरे। रोगीने आलसीजाणरे॥ शिक्षा नहीं पामे गुरुज्ञानकीरे। ये पांच बोलके प्रमाणरे
॥विनय ॥ ७॥ आठबोलकरशिक्षापामियेरे । हंसेनहीइन्द्रीदमनहाररे॥ मर्म नबोले कोइ पारकारे। छोटा मोटा टालेअतिचाररे
॥विनय ॥ ८॥ लोलपी नहीं रसना तणोरे।होवे जे घणाक्षम्यावंतरे॥ झूठ न बोले साच सुहामणोरे।थासे जो एहवो कोइ
संतरे ॥ विनय ॥ ९ ॥ शंख ने दूध दोइ ऊजलारे। शोहे छे जगत् मझाररे॥ त्यों सुपात्रने ज्ञान सीखव्योरे।होवेघणाको आधाररे
॥ विनय ॥ १० ॥