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दिको पढना, श्रवण करना और दूसरोंको पढाना, यह उत्तम जनोंका कर्त्तव्य है. इसलिये चंद स्तवन वेगेरा जोकि कविवर मुनि श्री हीरालालजी महाराजके बनाये हुवेथे, उनको संग्रह कर शुद्ध करके भव्य जीवोंके हितार्थ पठन करने योग्य जाण प्रथम ‘श्री जैन सुबोध हीरावली ' ना
मक ग्रंथकी १००० प्रति छपवाकर श्री. संघको __अमूल्य अर्पण कीथी, जोकि सर्व प्रिय होनेसे
थोडीही दिनोंमें सब वितिर्ण (खर्च) हो गई. ___ उसी अपेक्षासे यह 'श्री जैन सुबोध रत्नावली' नामक ग्रंथ कविवर मुनि श्री हीरालालजी महाराज रचितको शुद्ध करके १००० प्रति श्री संघकी सेवामें भेट करके कृतार्थ होते हैं.
चार कमान ) श्री संवके सेवक. मा. हैद्राबाद (दक्षिण) पन्नालाल जमनालाल कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा. )
रामलाल किमती