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(३९) ॥ लोक स्वरूप दर्शक-लावणी खांत खडी॥ सुनोजिकरयह तीन लोकका।ज्ञानीकाज्ञानसुनातेहैं।। चउदा राजू प्रमान देखलो।स्वर्गनर्कबतलातेहैं।आ॥ सात राजू प्रमाण उंचे हैं।सात राजू नीचो जानी॥ पांचसो त्रेसठ भेद जीवकाात्रस स्थावर वस्ता प्रानी॥ चार गति चौवीस दंडक हैं। सवही इसमें समानी॥ सात राजूवोअधोभवनमें।भवनपतिव्यंत्तरनठानी॥ व्यंत्तरदेवके नगरअसंख्या।लंबा चौडा पहचानी ॥ सातकोटऔरबहोत्तरलाखहै।भवनपतीयोंकेभवनानी। व्यंत्तर देवका बत्तीस इन्द्र है। वीस भवनवासी कहलाते हैं ।। च. ॥ ॥१॥ सात नर्ककावचानसुनलो।सात राजूजो फरमाया॥ गुन पञ्चासपांथडे,चोरासीलाखनौवासावतलाया। वसे जीव बहुतकाल नर्कौ । मोटा पाप जो कमाया।। परमाधामी पन्दरहजातका। पापीको दुःख देसताया।