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( ३७ ) धन दौलत औरभराखजाना। यह नहीं चलतेतेरेलार॥ क्यों ललचाना लालचसे । दुःख देखत है यह संसार ॥ कुसंगत कबहु नहीं करना ।
कुलच्छन नाहक लगाता है ॥ ज्ञान. ॥ ॥ १ ॥ धन दोलत धरती अन्दराधर २ चैतन्य राह धरी ॥ कौडी जोडरकर | लाखों क्रोडों संचय करी ॥ जिसदिन चैतन्य कूंच करेगा।घरी रहेगा संचीसिरी ॥ जिन्हने सुकृत्य कियाइसी से । वही संसार से गयेतिरी ॥ निग्रन्थ वही नहीं लालच जिन्हके । अज्ञानीको जगाते हैं | ज्ञान. ॥ केइ अज्ञानी करते निंदा | उनके संगमेंनहीं जाना | दुर्जन सेती जाय अडे तो । हटकर पीछा नहीं आना ॥ गधाटेकको दूर हटादो। क्यों करते हो तानोंताना ॥ या चतुराई करे है कोई। गुण अवगुणकी छानोछाना || ज्ञानी गुरू गुणके सागर ।
॥ २ ॥