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'धन दौलत औरभराखजाना।यहनहींचलनेतेरेलार॥ वयों ललचाना लालचने। दुःख देखतहेयहसंसारा॥ कुमंगत कबहु नहीं करना। कुलच्छन नाहक लगाता है ॥ ज्ञान. ।। ।। १ ॥ धन दोलन धरती अन्दरावर २ चैतन्य राह धरी॥ कोटीरजोतकर । लावा कोडों संचय करी ॥ जिस दिन चैतन्य कुंच करेगाधिरी रहेगासंचीसिरी।। जिन्दने नुरुत्य कियाइनीमे।वही मंमारसे गयेतिरी ।। निबन्ध वही नहीं लालच जिन्हक ।
अतानीको जगाते हैं । तान. ॥ ॥२॥ पं. अतानी करने निंदा।उनके संगमेंनहीं जाना॥ दर्जन मनी जाय अडे नो। हटकर पाठनहीं आना। गपाटेकको दर रटादो। क्यों करते हो नानांनाना।। या नगई करे कोई गुण अवगुणशी छानोमाना। तानी गुर गुण सागर ।