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हमने तारो हो तुम दीन दयालके ॥ आ. ॥२॥ मात पिताकी गोदमें । रमावे हो रामतडी जेमके ॥ बाल विवेक समझे नहीं। इम जाणी हो मुज पर धरो प्रेमके ॥ आ.॥३॥ उदयाचलउदयहुवे । सहश्रकीर्णेहोजिमप्रगटेभानुके॥
आतम मंडल जाणिये । जिम प्रगटे हो गुरूजीको ज्ञानके ॥ आ. ॥ ४ ॥ चंद चकोर तणी परे । इमलागोहोहमएकण चित्तक॥ क्षिण भर अलगो नहीं रहे। बालूडोहो जिम चहावे मावित्त के ॥ आ.॥ ५॥ विघ्न सभी दूराटले।सफलथाजोहोयामुखकी वाणके। श्रोता सुण सुख संपजे । बहू पावे हो आदर सन्मानके ॥ आ. ॥ ६ ॥ तात श्रीरलचंदजी। माताजी होराजांजीजाणके ।। जेष्ट पुत्र जवाहिर लालजी।