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(२७) ॥ साधू गुण स्तवन ।। राग-वसंत-होरी ॥ साधु आयारे भविक जीव तारनको। गुरू आयारे भ० ॥ आं० ।। ज्ञान सुनावे धर्म बतावे । क्रोध लोभ परिहारनको ॥ साधु ॥ १॥ जन्म मरणका जो फंद मिटावे । दुर्गति दूर निवारणको ॥ साधु ॥ २ ॥ पट कायाका जो प्राण बचावे । रागदेप दोइ हारनको ॥ साधु ।। ३ ॥ पंत्र इन्द्रीको दमन करावे । मान अहंकार मद गारनको ॥ साधु ॥ ४ ॥ करी तन तपस्या जोर लगावे । अष्ट कमरिपु मारनको ॥साधु ॥ ५ ॥ म्वर्ग गतिका जो सुख मिलावे । दयामार्ग दिल धारनको ॥ साधु ॥ ६ ॥