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(१६९) ।। अधरवरणोका सवेया ३१॥ अरिहंत ध्यानधर ज्ञानका उद्योत कर । संसार सागर तर ऐसीकरो करनी ॥ गुरुक चरण चित रखिये हरप नित। साधन स्वर्ग गति यह रीत तरनी ॥ दानदया सत्य सील दुर्गतिको दूर ठेल । नुकत्यको सजगेलकष्ट दुःख हरनी ॥ अंतःकरण सेती इंद्रियोंको जीतेजती । हीरालाल कहे सिद्ध गतीकी निसरनी ॥ १ ॥ सुनाहा चतुर नर सुत्तरकी शिक्षा पर।
आलमको दूर कर एक चित्त लाइये ॥ किजीये सुकृत्य, नहिं किजीये दुकृत्य संग। साधुसेती एक रंग नित्य गुण गाइये ।। अलिक अदन त्याग हिंस्यासे न कीजे राग । अष्टादशा दुष्ट यांकि संगत न जाइ ये ॥