________________
( १५९ )
महाराज कागज लिख दीनों डारीजी । मेरे संकटको कर दूर बाप मैं बेटी तुमारीजी || दोहा - कारीगर बुलायने, सुरंग खोदायों एक । मानवतीका मेहलमें, दाखल हुवासो देख || आवे जावे बाप घर, करी जोगनको भेख | राग अलापे शहर में, नर मिल देखे अनेक || छूट-या खवर शहरमे हुड़ जाय राजाको । बुलाव जोगन सुनावो गाना हमको ॥ पांव पडे जोडिया हाथ शरम नहीं उनको । होगया रागवश फिरे मृग ज्यों वनको ॥ मिलत - राजा को वश करलिया सुनावें गाली | महाराज कपटसे भूप छलानाजी ॥ त्रिया ॥ २ ॥ एक दल स्थंभनकी पुत्री रत्नवती नामा | महाराज मानतुंग परणवा जावंजी । जब कहे जोगनसे चलो आपविन नही सुहावजी ॥