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(११६) ऐसा भरतखन्डमें और दूसरी माता जायंति ॥ सात पुत्र पामीन अजुलगाएककृष्णहैदुःखहरणं॥ निर्णयसागर नेमजिन । पासे जाकर करूं निरण।। शेर-रथमें बैठ बंदन गया। लारे घणो परिवारजी। भगवंत संशय टालियो। योतोघणोअधिकारजी।। पुत्र नहीं कोई औरका।यहछेही थाराअंगजातजी॥ पूर्वकी बीती हकीगत । भाखी श्री जगनाथजी॥ छूट-माता सुणी बात हिवडामें हर्ष भरानी । निज नन्दन अपने देखनको हुलसानी ॥ करी सबको बंदना फिर आइ नेमजी पासे । जिनराज बचनको रही हियेमें विमासे ॥ मिलत-मेहलोंके अन्दर आइ देवकी। चिन्ता उपनी चितधरणं ॥ भद्दल ॥ ४ ॥ सात पुत्र मुजअंग ऊपना।एकणकोंनहींहुलराया॥ बालपनाकी बालककी। रमत करी नहीं रमाया ॥