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( १०२ )
यह तीन लक्ष घर पुत्र बाहूबल जाया ||महाराज ॥ केई विद्याधर आयाजी ॥
भिडगया मोरछा रण खेत । हटे नहीं पीछा हटायाजी ॥ जब भरतेश्वरजी चक्रको चाक चलायो || महाराज ॥ चक्र जायफिर २ आवेजी ||
नहीं चले वंश पर जोर । देवता ऐसा चेतावेजी ॥ एक अनल विद्याधर अनलकी वर्षा की धी ॥ महाराज ॥ चक्र जाइ उत्तमांग लीधोजी ॥ दिया ॥ ३ ॥ जब इन्द्र आय दोनों को यों समझाया ॥ महाराज ॥ किसीको नहीं खपानाजी ॥
तुम करो आपस में युद्ध | जीत होवे बलवानाजी ॥ जब केइ तरहका किया युद्ध नहीं हार्या ॥ महाराज ॥ बाहूबल मूंठ उठाईजी ||
तब इन्द्र पकड लियो हाथ । सोचो दिलके मांही जी || यह बात हुई नहीं होवे जग के मांही ॥ महाराज ||