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(८२) भूल गयो भर्मना में भगवंत । जो दुःख मेटनवालारे ॥ लोभ ॥ २ ॥ रात दिवस तूं करत है धंधो । कूड कपट करी जालारे ॥ लोभ ॥ ३ ॥ सजन वोही सब दुःख मिटावे । अंतःकरण से वाहलारे ॥ लोभ ॥ ४ ॥ पुद्गल सुखमें सबर न आवे । इन्द्रादिक भूपालारे ॥ लोभ ॥ ५॥ कहे हीरालाल दयालसे अर्जी । दुर्गतीका देवो टालारे ॥ लोभ ॥ ६ ॥
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॥ पद-निंदा दुर्गुण राग-अलीयामारु-मल्हार॥ अर्जी निंदककी नीत खोटी । यो तो बात बनावे सांची झूटी ॥टेर ॥ सीताजी सिर दोष चडायो ।