________________
লন খুলা যায় প্রম
दोनों संभारै कूप - जलसम,' दरव घरमें परिनया ।
निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया। पनि साध शास्त्र अभय-दिवैया, त्याग राग विरोधकों।
विन दान श्रावक साधु दोनों, लहैं नाहीं वोधकों ॥८॥ ॐ ही उत्तम त्याग धर्माशाय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा। परिग्रह चौबिस भेद, त्याग करें सुनिराजजी। तिसनाभाव उछेद, घटती जान घटाइए ॥६॥ उचम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह-चिन्ता दुख ही मानो। ____फांस तनकसी तनमें सालै, चाह लंगोटी की दुख भाले। भाले न समता सुख कभी नर, चिना झुनि-मुद्रा धरै।
धनि नगनपर तन-नगन ठाई, सुर असुर पायनि परें । घरमांहि तिसना जो घटावै, रुचि नहीं संसारसौं।
बहु धन बुरा हू मला कहिये, लीन पर-उपगारसौं ॥६॥ ॐ ही उत्तम आदिवन्य धर्माशाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। शील-वाडि लौ राख ब्रह्म-भाव अन्तर लखो। करि दोनों अभिलाख, करहु सफल नर-भव सदा ॥१०॥ उत्तम ब्रह्मचर्य मन आनौ, माता बहिन सुता पहिचानौ ।
सहैं वान-वर्षा वहु सूरै, टिक न नैन-बान लखि करे। कूरे तिया के अशुचितनमें, कामरोगी रति करे।
बहु मृतक सड़हिं मसान माहीं, काक ज्यों चोंचें भरै ॥