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जैन पूजा पाठ संग्रह
भविक-सरोज-विकाश, निंद्य-तमहर रविले हो । जति श्रावक आचार, कथनको, तुम ही बड़े हो ॥ (हो) पूजों मदन प्रहार || सी०
फूल - सुवास अनेकसों
ॐ ह्रीं विद्यमानविशतितीर्थ करेभ्य कामवाणविध्वानाच पुष्प० ॥ ४ ॥
काम-नाग विषधाम
नाशको गरुड़ कहे हो । क्षुधा महादवञ्चाल. तासुको मेघ लहे हो ॥ नेवज बहु घृत मिष्टसों (हो) पूजों भूखविडार ॥ सी०
ॐ ह्रीं विद्यमानविगतिनीर्थंकरेभ्व क्षुधारो विनाशनाय नैवेद्य० ॥ ५ ॥
उद्यम होन न देत सर्व जगमांहि भयो है । मोह-महातम घोर, नाश परकाश करयो है ॥
पूजों दीप प्रकाशसों (हो) ज्ञानज्योति करतार ॥ सी०
ॐ ह्रीं विद्यमान विंशतितीर्थ करेम्य. मोहान्धकारविनाशनाय दीप० ॥ ६ ॥
कर्म आठ सब काठ, भार विस्तार निहारा ।
ध्यान अगनिकर प्रकट, सरव कीनों निरवारा || धूप अनूपम खेवतै (हो) दुःख जलै निरधार || सी०
ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्योऽष्टकर्नदहनाय धूप० ॥ ७ ॥
मिथ्यावादी दुष्ट, लोभऽहंकार भरे है |
सबको छिनमें जीत जैनके मेरु खड़े हैं ॥
फल अति उत्तमसों जजों (हो) वांछित फलदातार || सी०
ॐ ह्रीं विद्यमान विंशतितीर्थ करेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं० ॥ ८॥