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जैन पूजा पाठ सग्रह
पटखड नवविधि तियसर्व, चउदहरतन भडार । कछुकारण लखिके तजे, पणचव मसिय जगार । शाति०॥६॥ देव रिपि सब मायक, पूजि चले जिन वोधि । लेय सुरा सिवका धरो, विरछ नदीश्वर सोधि । शांति०।७। कृष्ण चतुरदसि जेठकी, मनपरजे लहि ज्ञान । इद कल्याणक तप करले, ध्यान धरया भगवान । शांति० ॥ षष्ठम करि हित असनक, पुर सोमनस ममार । गये दयो पय मित्तजी, वरषे रतन अपार । शाति०1. मौनसहित वसु दुगुणही, बरस करे तप ध्यान । पौष सुकह ग्यारसि हने, घाति लह्यो प्रभु ज्ञान । शाति० ॥१०॥ समवसरन धनपति रच्यो, कमलासनपर देव । इन्द्र नरा षटद्रव्यकी, सुति थिति थुति करि एव । शांति० ॥११॥ धन्य जगलपद सो तनौ, मायौ तुम दरबार। धन्य उम चखि ये मथे, वदन जिनन्द निहारि । शाति० ॥१२॥ आज सफल कर ये मये, पूजत श्रीजिन पाय । सीस सफल अब ही मयो, धोक्यो तुम प्रभु जाय । शाति० ॥१३॥ माज सफल रसना मई, तुम गुणगान करन्त । धन्य भयौ हिय मो तनी, प्रभुपदध्यान धरन्त । शाति० ॥१४॥ साज सफल जग मो तनौ, श्रवन सुनत तुमवैन । धन्य मये वसु अग ये, नमत लयौ अति चैन । शांति० ॥२५॥ राम कहै तुम गुणतणा, इन्द लहै नहि पार । मैं मति अलप अजान हूँ, होय नही विसतार । शाति० ॥१६॥ बरस सहस पचीसही, षोडस कम उपदेश । देय समेद पधारिये, मास रहे इक सैस : शाति० ॥१७॥ जेठ मसित चउदसि गये, हनि मघाति सिवथान । सरपति उत्सव जति करे, मगल मोछि कल्यान । शांति०५