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________________ ४४२ जैन पूजा पाठ माह उनत अशोक तर के नीचे निर्मल शरीर अतिशय कारी, पति कान्तिवान जगमगा रहा झाको नगती है नति प्यारी, यह हृदय देव लगता मानो तन ने उजियाला पाया हो, या फिर मेों को चोर सूर्य का दिम्ब निकल पाया हो ॥ २८॥ है प्रमु ये मणिमय सिंहासन जितकी किरणें जगमगा रही, सुवरण से ज्यादा कान्तिवान तन को शोमा जति बढ़ा रही, ऐसा लगता उदयाचल पर सोने का सूरज बना हुमा, जिस पर किरणों का कातिवान सुन्दर चन्दोवा तना हुजा ।। २६ !! जव समोशररा मे मगवन के सोने समान अन्दर तन पर, दुरते हैं जति रमणोक चंदर जो कुन्द पुष्प जसे मनहर, तब ऐसा लगता है उमेर पर जल की धारा दहती हो, चन्द्रमा समान उज्ज्वल राशि मरमर मरनों से मरती हो ॥ ३० ॥ शशि के समान सुन्दर मन हर रवि ताप नाश करनेवाले, मोती मरियो से जड़े हूये शोमा महान देनेवाले, प्रभु के सर पर शोभायमान त्रय छत्र समो को बता रहे, ये तोनसोक के स्वामी हैं जगमग कर जग को बता रहे ॥१॥ गम्भीर उच्च रुचिकर ध्वनि से जो चारो दिशा गुलाते हैं, सत्सग की महिमा तीनलोफ के जीवो को बतलाते हैं, जो तीयंटर की विजय घोषणा का यश गान सुनाते हैं, गुलायमान जो नम करते वह दुन्दुमि देव बजाते हैं ।। ३२॥ जो पारिजात के दिव्य पुष्य मन्दार पादि से लेकर के, करते हैं उरगरा पुष्पवृष्टि गन्दोदविन्दु को दे कर के, ठण्डो बयार में समात्ति जद कल्प वृक्ष से गिरती है, तद लगता प्रभु को दिव्यध्वनि ही पुष्प रूप मै सिरती है ॥३३॥ जो त्रिभुवन में देदीप्यमान की दीप्ति जीतनेवाली है, जो कोटि सूर्य को मामा को मो लषित करनेवाली है, जो शशि समान हो शान्ति सुघा जग को वर्षानेवाती है, उस मामण्डल की दिव्य चाँदनी से मी छटा निराली है।। ३४॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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