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________________ ४३४ जैन पूजा पाठ सग्रह देवजीर सुखदास शुद्ध वर, सुवरन-यार भराई , पुज धरत तुम चरनन आगें, तुरित अखय-पद पाई। वासुपूज्य वसु-पूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई , वाल ब्रह्मचारी लखि जिनको, शिव-तिय सनमुख धाई ॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतानि निर्वपामीति स्वाहा। पारिजात सतान कल्पतरु, जनित सुमन बहु लाई, मीनकेतु-मत-भजन-कारन तुम पद-पद्म चढाई || वासु० ॥ ॐ ली श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय कामवाणविध्वसनाय पुष्पाणि निर्वपामीति स्वाहा । नव्य गव्य आदिक रस-पूरित, नेवज तुरित उपाई, क्षुधा-रोग-निरवारन-कारन, तुम्हे जजों शिर-नाई ॥ वासु० ॥ ॐ हों श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा । दीपक-जोत उदोत होत वर, दश दिशमे छवि छाई । तिमिर-मोह-नाशक तुमको लखि, जजो चरन हरषाई ॥ वासु० ॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय माहान्धकार विनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा । दशविध गध मनोहर लेकर, वातहोत्र मे डाई । अष्ट करम ये दुष्ट जरतु हैं, धूम सु धूम उडाई ॥वासु०॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा । सुरस सुपक्व सुपावन फल ले, कञ्चन-थार भराई । मोक्ष-महाफल-दायक लखि प्रभु, भेंट धरों गुन गाई ॥ वासु० ॥ ॐ ह्रीं वासुपूज्य जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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