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पाठसग्रह
तासों कीन्हूं सेठ विवाह, वाजा वाजे अधिक उछाह । परणि सुपर लायो सुख भार, आगे और सुणू विस्तार ॥ ' दोहा-भोग शर्म करती भई, कन्या इक लखि माय ।
नाम धरयो तब मोदते, तेजोमती सुभाय ॥६६॥ छन्द-प्यारी माताकू लाग, नहिं तिलकमती सों रागै।
नाना विधि करि दुःख द्यावे, ताकै मनसा नहीं भावें ॥६॥ तब तात सुतासु निहारी, कन्या इह दुःखित विचारी। तब दासी आदिक नारी, तिनसों इमि सेठ उचारी ॥६८॥ याकी सेवा सुख कारी, कीज्यो तुम भक्ति विथारी ।
ऐसे सुणि सो सुख पावै, तब नीकी भांति खिलावै ॥६६॥ चौपाई-एक समय कञ्चन प्रभ राय, दीपान्तर जिन दत्त पठाय ।
नारीसों तव भाखै जाय, हमकू राजा दीपि भिजाय ॥ तात एक सुनो तुम बात, इह दो परणाज्यो हरपात। अष्ट गुणां युत जो वर होय, इनको करि दीज्यो अव लोय ॥ इम कहि दीपि चल्यो तत्काल, और सुणू श्रेणिक भूपाल । आवै करन सगाई कोय, तिलकमती जाचै तव सोय ॥ बन्धुमती भाखै जब आय, यामें अवगुण हैं अधिकाय । मम पुत्री गुणवन्ती धणी, रूप आदि शुभ लक्षण भणी ॥ तातें मो कन्या शुभ जान, वर नक्षत्र व्याहौ तुम आन । इनकी माने नाही वात, तिलकमती जाचै शुभ गात ॥ च्याह समय कन्या मम सार, करदेस्यूं न्याहित जिहिवार । करी सगाई आनन्द होय, व्याह समै आये तब सोय ॥