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________________ S ममदह ४१९ श्रीमती नाके पर नारि, निन पति अति ही मुसकारि । एक समय चन क्रीड़ा हेव, जात हतो निज सैन्य समेत ॥ १० ॥ निजपुर से जय हो गयो, नत्र मन माहीं आनन्द लयो । पी एक सुनीयर सार, मास वाम करिके भवतार ॥ ११ ॥ अमन काजि बाते मुनि जोग, राणीसां भासे नृप सोय । तुम जानो पो भोजन सार, कीजो मुनिकी भक्ति अपार ॥ १२ ॥ मणिगण मन यो, भोगों में मुनि अन्तर करतो । १४ ॥ १५ ।। १६ ॥ पापीमुनि आग, मेरे सुमन दियो गमाय ॥ १३ ॥ मनी में दुःखी अति चणी, आना मान नली पति तर्णी । जायद भोजन तत्काल जाने और चुनी भूपाल ॥ सूरतही घर गयो, राणी वसन महानिन्द दयो । करीरी को जुहार, दिपी मुनीन्यू दुःखकार ।। भवन करिनाले सुनिशर, मारग मादि गद्दल अति आग | भूमि परत सुनिशन, कियो भाचकां देखि इलाज ॥ नटे एक जिनालय नार, नहीं ले गये करि उपचार । फेरि ऐसे पच कमी, राणी मोटी भोजन दयो ॥ वानी महा दुःख पाय, शून्य हो गये है अधिकाय । धिर-धिक है नाकी अति घणू, दुष्ट स्वभान अधिक जा तणू ॥ १८ ॥ aat aantar राय, गुणी बात राजा दुःख पाय । रानीगों मोटे चच कहे, वखाभरण खोसि करि लये ॥ काटि दई घर चाहरि जन, दुःखी भई अति ही सो त । ऋष्टातुर है भारत कियो, प्राण छोरि महिषी तन लियो ॥ २० १७ ॥ १६ ॥ u:
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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