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________________ अन पूजा पाठ सग्रह ४०९ - । २ अशरण भावना। । कालसिंह ने मृगचेतन को, घेरा भव वन मे। नहीं बचावनहारा कोई, यो समझो मन मे ।। मन्त्र यन्त्र सेना धन सपति, राज पाट छूटे। वश नहिं चलता काल लुटेरा, काय नगरि लूटे ॥६॥ चकरतन हलधरसा भाई, काम नहीं आया। . एक तीर के लगत कृष्ण की, विनश गई काया ।। देव धर्म गुरु शरण जगत में, और नहीं कोई। भ्रम से फिर भटकता चेतन, युही उमर खोई ॥५॥ - ३ संसार भावना। - । ।' जनम मरन अरु जरा रोग से, सदा दुःखी रहता। । । द्रव्य क्षेत्र अरु कालभाव' भव, परिवर्तन सहता ।। छेदन भेदन नरक पशुगति, बध बन्धन ‘सहना । राग उदय से दुःख सुरंगति में, कहीं सुखी रहना ॥८॥ भोगि पुण्यफल हो इकइन्द्री, क्या इसमें लाली। - "कुंतवाली दिन चार वही फिर, खुरपा अरु जाली ॥ मानुप जन्म अनेक विपतिमय, कहीं न मुख देखा। पञ्चमगति सुख मिले शुभाशुभ को, मेटो लेखा ॥६॥ ४ एकत्व भावना-1 - . . . . . जन्मै मरै अकेला चेतना सुख दुःख का भोगी। - । और किसीका क्या इक दिन यह,.देह जुदी होगी ।।, -
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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